मेरे जिस्मसे पाता मै,
कभी जुगनुओंसे दाने;
कभी चमकीले,कभी अंधियारे
इन दानोंको बो देता हूं,
जिस्मकी मु्ठ्ठीभर माटीमें;
सोचकर यह की..
पौधे उगेंगे कभी चांदनीके,
मेरेही अपने जिस्मपर;
यह सोचना कितना सरल है..
जितना वैशाखसे लिपटे कायाको,
वसंतका आभास देना;
कितने वसंत बीत जाते है..
इस कायाको जुगनुसा लुभाकर,
लेकीन वसंत! मैं तुम्हें जुगनुओंमें;
नही चांदनीमें चाहता हुं...
तुम चांदनीमें आओगे भी, लेकीन,
मेरी प्रतीक्षा करती आंखेही;
’पथ’ बन चुकी होगी..
हाथ क्या आयेगा तब अधःकार के,
धागोंको सिमटकर सुर्य बुनते;
भूतकाल स्मृति के अलावा..
कितने ऋतू आते है, जाते है,
मैं उन्हें रोक नही सकता;
लेकीन वसंत !तुम आना जरूर!!
कभी जुगनुओंसे दाने;
कभी चमकीले,कभी अंधियारे
इन दानोंको बो देता हूं,
जिस्मकी मु्ठ्ठीभर माटीमें;
सोचकर यह की..
पौधे उगेंगे कभी चांदनीके,
मेरेही अपने जिस्मपर;
यह सोचना कितना सरल है..
जितना वैशाखसे लिपटे कायाको,
वसंतका आभास देना;
कितने वसंत बीत जाते है..
इस कायाको जुगनुसा लुभाकर,
लेकीन वसंत! मैं तुम्हें जुगनुओंमें;
नही चांदनीमें चाहता हुं...
तुम चांदनीमें आओगे भी, लेकीन,
मेरी प्रतीक्षा करती आंखेही;
’पथ’ बन चुकी होगी..
हाथ क्या आयेगा तब अधःकार के,
धागोंको सिमटकर सुर्य बुनते;
भूतकाल स्मृति के अलावा..
कितने ऋतू आते है, जाते है,
मैं उन्हें रोक नही सकता;
लेकीन वसंत !तुम आना जरूर!!
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