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शुक्रवार, 6 जुलाई 2007

कैद

आस्वाद लेते फ़ल-फ़ूलोंका
आकाशमें विहंगरत पंछी
बहुरंगी पंख मखमलसे

हे मेरे मनके स्वच्छंद सुकुमार
करते हो स्मृती- गगन को पार
अब-सो गया तुम्हारा सुरा-स्वर
स्वर्ण-पिंजडेमें

वियोग की दशामें क्या कर पाओगे?
खो जाओगे विगत यादोमें

शेष रहा प्रिय -प्रणयमें
आवाज देनेकी उत्कंठता
और-
क्षुब्ध एक कंपनसा निद्रित
प्रिया के अधरोमें ---

भूल

विस्मृत कैसी होगी
वह धनतेरस की रात
और
आलिशान इमारतोंपर
जगमगाते दीप.
विस्मृत कैसी होगी
मेरी अपनी कुटियाकी
वह बिना दीये की शाम
और
बासी को सेंकते
चूल्हेमें जलते आंसू
भूल तो मेरी ही थी,
मैंने उन इमारतोंको
आंखोमें बसा लिया था.

भ्रमंती

 जीवन सफ़रमें
 दो पंछी
 बेसहारा उडते जाते
 जीवन की चित्रांकित रेखाओने
 बना दिये उनके दो घर
 एक उषा के नाम
 एक निशा के नाम
 और मैं-
 एक बेहाल भौंरा
 छूपा फ़ूलकी कायामें
 कल की उषा की प्रतीक्षामें

पथिक

मैं और तुम, पथिक एकही राह्के
तुम चाहती हो फ़ूलोंकी सेजपर चलना
और- मैं..
मैं इन सबसे भिन्न हूं
मैं अपनी मंजिल तय की है
यह एक पहेली है न तुम्हें?
फ़ुलोंको छू कर देखो
कांटे स्वयं ही जवाब देंगे

गुरुवार, 5 जुलाई 2007

जन्मदिन अभिलेख (१)


हे उषा देवीके चंचल कलीके,
युग्म के ललाट की पहली रेखा
दे रहा हूं बधाई सानन्द,
जन्मदिन की अभिलेखा

'प्रतीक्षा' केवल प्रतीक्षा का संगम,
परिवर्तित हुआ इतना
नववर्षकी रजनीमें,नव तुषारका
सघन मिलन होता जितना

जीवन तेरा स्वर्णमयी हो,
बिखरा हो वसंत मधुमयी
भाग्य सर्वदा मीत तुम्हारा,
लाये उमंग हर पल नयी

फ़ले फ़ुले जीवन की बगिया,
नित फ़ुलोंका साज लिये
सजे गीत जीवन में तेरे,
नित नया झंकार लिये

मै हूं आगन्तुक व्यक्ति,
करता अभिलाषा सविशेष
अर्पित शब्दोंकी पंखुरिया,
'प्रतीक्षा' को मधुमय संदेश

जन्मदिन अभिलेख (२)

ओ! 'उषा ' रम्य रमणिक की,
तुम प्रथम अनुपम कली ।
बन प्रतीक्षा की पर्यायी,
'अशोक' दर आकर ढली।

रजनीके सिंगार में तेरी,
जीवन बेला उदित हुई।
तबसे तेरे मात-पिताने,
आनन्दित मकरंद छुई।

जीवन हो संगीत गीतमय,
भाग्य सर्वदा मीत तुम्हारा।
मात-पिता प्रिय की तुम प्यारी,
करना तुम निर्माण भी प्यारा।

फ़ागुन की रंगी क्रिडामें,
सावन का सतरंग फ़ुहारा।
शरद्काल की धूप चांदनी,
हो वसंत भी प्यारा प्यारा।

यूं 'आगन्तुक' स्नेहका, देता है वो हार।
जहां प्यार फ़ूले फ़ले, खिले प्यार ही प्यार॥

रविवार, 1 जुलाई 2007

गीत

दर्पण भी टूट्ना सीखा
मेरे हृदय की दरारोंसे ।

खुशीयोंको कहां छिपाऊं ?
कलियोंमे या सुमनोंमे
आंसूओंको कहां छिपाऊ ?
सरिता में या झरनोंमे

झरनोंने भी झरना सीखा
मेरे नयनोंकी आसूओंसे ॥

दोस्तोंका क्या बयां करूं
वह तो बिछडे साथी हुए
जब देते दर्द शूलसा
फ़ूल पाकर भी बेईमान हुए

फ़ूलोंने भी हसना सीखा
मेरे जीवन बहारोंसे ॥

यहां कोई किसीका सगा नही
एक दुसरोंकी दुहाई देता
चिडियां भी चहकती हॆ
आसमानसे कहकर नाता

चिडियोंने भी चहकना सीखा
मेरे शब्द - गरिमासे ॥

परिवर्तन

जिंदगीके अंधेरोंमे
जब--
मै टूटतासा जाता हूं
अपनी थकानसे
तब--
यह मायावी दुनिया
दलदलसी लगती है ।
और मै--
उसमें बिलबिलाता एक कीडा़
पर--
तुम्हारे संसर्गसे
खिल उठ्ती उजाले की किरण
दूर कहीं बादल गरजते हैं ।
कॄष्ण छाया फ़ट पड़ती
और मै--
बरसता जाता हूं
उन जल बिंदुओं की तरह
जो असहाय हैं किसी हद तक
बरसने या गिरने के लिए
मजबूर
अपने हाल पे छोडे हुये ......