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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

दर्द एक गाँव का

क्या हो गया है इस गांव को
उपेक्षित हो गयी अमराई
नदीका बहता जल सिमट कर
बन गया गतिहीन बाँध
चंदन के वृक्ष काट दिए गए हैं
बबूलों की जगह फ़ैल गयी है बेह्याकी बाड
जहांसे निकलते है हरे साँप
गांव के स्मशान पर बैठी है
एक गमगीन बुढिया,
जिसके झुर्रीदार चेहरे पर
शेष है अभी दो नम लकीरें
शायद कूछ देर पहले
बही होंगी दर्द्की दो नदियां
जिसे पहचानकर भी नही
पहचानते है इस गाँवके सयाने लोग
और जब पालतू कुत्ते
जिनके गलोमें पडें है विदेशी पट्टे
बुढिया को देखकर भूंकते हैं
तो यही सयाने बजाते है खुश होकर
अपने घिनौने हाथोंसे तालियां,
जब भी करता हूं अपने गांवके
दर्द को समझाने की कोशीश
मढ दिया जाता है मुझपर
आवारगी या फ़िरका परस्ती का विशेषण
गांव या बुढिया की कुशल क्षेम पूछना
मान लिया गया एक अपराध
जब मैं करता हूं कोशीश
दोनोंके दर्द को ओंटोंपर लाने की
मेरी आवाज को दबाने का
जी-तोड उपाय करते हैं
ये भूंकनेवाले पट्टेदार कुत्ते.

--संकलित