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रविवार, 1 जुलाई 2007

परिवर्तन

जिंदगीके अंधेरोंमे
जब--
मै टूटतासा जाता हूं
अपनी थकानसे
तब--
यह मायावी दुनिया
दलदलसी लगती है ।
और मै--
उसमें बिलबिलाता एक कीडा़
पर--
तुम्हारे संसर्गसे
खिल उठ्ती उजाले की किरण
दूर कहीं बादल गरजते हैं ।
कॄष्ण छाया फ़ट पड़ती
और मै--
बरसता जाता हूं
उन जल बिंदुओं की तरह
जो असहाय हैं किसी हद तक
बरसने या गिरने के लिए
मजबूर
अपने हाल पे छोडे हुये ......