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शुक्रवार, 6 जुलाई 2007

कैद

आस्वाद लेते फ़ल-फ़ूलोंका
आकाशमें विहंगरत पंछी
बहुरंगी पंख मखमलसे

हे मेरे मनके स्वच्छंद सुकुमार
करते हो स्मृती- गगन को पार
अब-सो गया तुम्हारा सुरा-स्वर
स्वर्ण-पिंजडेमें

वियोग की दशामें क्या कर पाओगे?
खो जाओगे विगत यादोमें

शेष रहा प्रिय -प्रणयमें
आवाज देनेकी उत्कंठता
और-
क्षुब्ध एक कंपनसा निद्रित
प्रिया के अधरोमें ---