कैसे बीते दिवस हमारे,
हम जाने या राम !
सहती रही सभी कूछ काया
मलिन हुआ परिवेश,
सूख चला नदिया का पानी
सारा जीवन रेत,
उगे काँस मन के फ़ूलोंपर
उजडा रूप ललाम !
प्यार हमारा ज्यों एक तार
गूंज-गूंज मर जाय,
जैसे निपट बावला जोगी
रो-रो धूल उडाय,
बट पीपल, घर-व्दार, सिवाने
सबको किया प्रणाम !
आंगन की तुलसी मुरझाई
क्षीण हुए सब पात
सांयकाल डोलता सीर पर
बूढा नीम उदास,
हाय रे वो, बचपन का घरवा
बिना दिए की शाम !
सुन रे जल, सुनरी ओ माटी
सुन रे ओ वातास
सुन रे ओ प्राणोंके दियना
सुन रे, ओ आकाश
दुःख की इस, तीरथ यात्रा में
पल ना मिला विश्राम !
-संकलित
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