जीवन सफ़रमें
दो पंछी
बेसहारा उडते जाते
जीवन की चित्रांकित रेखाओने
बना दिये उनके दो घर
एक उषा के नाम
एक निशा के नाम और मैं- एक बेहाल भौंरा
छूपा फ़ूलकी कायामें कल की उषा की प्रतीक्षामें
पानी के लहरोंपर किसीने हथेलियोंसे कुछ अक्षर लिखे थे;तैरते गये वे जैसे जलते हुए दीपक शाम ढलनेपर किसी प्रार्थना-गीत के साथ पानी पर चलते है.... कुछ ही दूर बढे होंगे कि किसीने उन अक्षरोंको पढ लिया..... बस! यही पहला प्यार ...
1 comments:
जीवन सफ़र में दो पंछी -- अच्छा रूफक है ।
भावपूर्ण रचना । बधाई
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