दर्पण भी टूट्ना सीखा
मेरे हृदय की दरारोंसे ।
खुशीयोंको कहां छिपाऊं ?
कलियोंमे या सुमनोंमे
आंसूओंको कहां छिपाऊ ?
सरिता में या झरनोंमे
झरनोंने भी झरना सीखा
मेरे नयनोंकी आसूओंसे ॥
दोस्तोंका क्या बयां करूं
वह तो बिछडे साथी हुए
जब देते दर्द शूलसा
फ़ूल पाकर भी बेईमान हुए
फ़ूलोंने भी हसना सीखा
मेरे जीवन बहारोंसे ॥
यहां कोई किसीका सगा नही
एक दुसरोंकी दुहाई देता
चिडियां भी चहकती हॆ
आसमानसे कहकर नाता
चिडियोंने भी चहकना सीखा
मेरे शब्द - गरिमासे ॥
मेरे हृदय की दरारोंसे ।
खुशीयोंको कहां छिपाऊं ?
कलियोंमे या सुमनोंमे
आंसूओंको कहां छिपाऊ ?
सरिता में या झरनोंमे
झरनोंने भी झरना सीखा
मेरे नयनोंकी आसूओंसे ॥
दोस्तोंका क्या बयां करूं
वह तो बिछडे साथी हुए
जब देते दर्द शूलसा
फ़ूल पाकर भी बेईमान हुए
फ़ूलोंने भी हसना सीखा
मेरे जीवन बहारोंसे ॥
यहां कोई किसीका सगा नही
एक दुसरोंकी दुहाई देता
चिडियां भी चहकती हॆ
आसमानसे कहकर नाता
चिडियोंने भी चहकना सीखा
मेरे शब्द - गरिमासे ॥
1 comments:
अति सुन्दर कविता ।
बहुत- बहुत बधाई ।
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